गुरुवार, 17 मार्च 2011

हबीब जालिब, साथी सचिन की कलम से...

अभी तक तो जो कुछ इस ब्लाग पर प्रस्तुत करता रहा, वह अकेले की पसंद थी। लेकिन पिछले दिनों एक लेखक को एक साथी के साथ पढ़ा। मेरे उन साथी ने उस लेखक का पूरा जीवन चित्र ही उकेर दिया है अपने ब्लाग पर। यहां उसी पोस्ट का लिंक दे रहा हूं। इस उम्मीद के साथ कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप खुद को उस शायर के रूबरू पाएंगे। तो प्रस्तुत हैं हर समय के समकालीन शायर हबीब जालिब साथी सचिन की कलम से...

अवाम के शायर हबीब जालिब की याद में

रविवार, 13 मार्च 2011

चाँद ने क्या-क्या मंज़िल कर ली


यूं तो चाँद तकरीबन हर शायर का प्रिय विषय रहा है, लेकिन इब्ने इंशा का चाँद जैसे उनका ही कोई हिस्सा है। गिनी-चुनी ही रचनाएं होंगी जिनमें इंशा जी ने चाँद का ज़िक्र न किया हो। मोहब्बत का कारोबार समझाते हुए चाँद के तौर-तरीके भी नुमायां हैं इस ग़ज़ल में... 

सावन-भादों साठ ही दिन हैं फिर वो रुत की बात कहाँ
अपने अश्क मुसलसल बरसें अपनी-सी बरसात कहाँ

चाँद ने क्या-क्या मंज़िल कर ली निकला, चमका, डूब गया
हम जो आँख झपक लें सो लें ऐ दिल हमको रात कहाँ

पीत का कारोबार बहुत है अब तो और भी फैल चला
और जो काम जहाँ को देखें फुरसत के हालात कहाँ

क़ैस का नाम सुना ही होगा हमसे भी मुलाक़ात करो
इश्क़ो-जुनूँ की मंज़िल मुश्किल सबकी ये औक़ात कहाँ