शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

खिलौने - कैफ़ी आज़मी

रेत की नाव, काठ के माँझी
काठ की रेल, सीप के हाथी
हल्की भारी प्लास्टिक की किलें
मोम के चाक जो रुकें न चलें

राख के खेत, धूल के खलियान
भाप के पैरहन, धुएँ के मकान
नाहर जादू की, पुल दुआओं के
झुनझुने चन्द योजनाओं के

सूत के चेले, मूँज के उस्ताद
तेशे दफ्ती के, काँच के फर्हाद
आलिम आटे के और रूए के इमाम
और पन्नी के शाइरान-ए-कराम
ऊन के तीर, रुई की शमशीर
सदर मिट्टी का और रबर के वज़ीर

अपने सारे खिलौने साथ लिये
दस्त-ए-ख़ाली में कायनात लिये
दो सुतूनों में तान कर रस्सी
हम ख़ुदा जाने कब से चलते हैं
न तो गिरते हैं न संभलते हैं.