सपने हर किसी को नहीं आतेबेजान बारूद के कणों में सोई आग को सपने नहीं आतेबदी के लिए उठी हुईहथेली के पसीने को सपने नहीं आतेशेल्फ़ों में पड़ेइतिहास-ग्रंथों को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़िमी हैझेलने वाले दिलों का होनासपनों के लिएनींद की नज़र होनी लाज़िमी हैसपने इसलिएहर किसी को नहीं आ...
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
मंगलवार, 10 अगस्त 2010
रास्ता तो चले - कैफ़ी आज़मी
ख़ार-ओ-ख़स तो उठें रास्ता तो चले
मैं अगर थक गया क़ाफ़िला तो चले
चांद सूरज बुज़ुर्गों के नक्श-ए-क़दम
ख़ैर बुझने दो उन को, हवा तो चले
हाकिम-ए-शहर, यह भी कोई शहर है
मस्जिदें बन्द हैं, मैकदा तो चले
इस को मज़हब कहो या सियासत कहो
ख़ुदकुशी का हुनर तुम सिखा तो चले
इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाऊंगा
आप ईंटों...
शुक्रवार, 6 अगस्त 2010
खिलौने - कैफ़ी आज़मी
रेत की नाव, काठ के माँझी
काठ की रेल, सीप के हाथी
हल्की भारी प्लास्टिक की किलें
मोम के चाक जो रुकें न चलें
राख के खेत, धूल के खलियान
भाप के पैरहन, धुएँ के मकान
नाहर जादू की, पुल दुआओं के
झुनझुने चन्द योजनाओं के
सूत के चेले, मूँज के उस्ताद
तेशे दफ्ती के, काँच के फर्हाद
आलिम आटे के और रूए के इमाम
और...