रेख्ता के तुम ही उस्ताद नहीं हो...
उन्हें समर्पित, जिन्हें पढ़ना हमेशा ख़ुद को कुरेदना भी रहा। बकौल मिर्ज़ा ग़ालिब - "रेख्ता के तुम ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब, सुनते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था"
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बुधवार, 17 जुलाई 2013
हबीब जालिब - कविता पोस्टर
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मंगलवार, 18 जून 2013
दुष्यंत कुमार - कुछ कविता पोस्टर
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हबीब जालिब - कविता पोस्टर
दुष्यंत कुमार - कुछ कविता पोस्टर
घिन तो नहीं आती है ? - नागार्जुन
पूरी स्पीड में है ट्राम खाती है दचके पै दचका सटता है बदन से बदन – पसीने से लथपथ। छूती है निगाहों को कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान बेतरतीब मूं...
सीने में जलन - शहरयार
जाने-माने शाइर शहरयार को उनके जन्मदिन पर याद करते हुए प्रस्तुत है 1979 में बनी फ़िल्म गमन के लिए लिखी गई उनकी यह ग़ज़ल - सीने में जलन आँखो...
आग लगाने वालो...- मंगलेश डबराल
मंगलेश डबराल जी की चंद पंक्तियों की एक कविता, पर असल में एक बहुत बड़ी हकीक़त। जब भी ये कविता जेहन में उभरती है, तमाम रूपों में मौजूद भेद-भाव ...
यह बच्चा कैसा बच्चा है
इब्ने इंशा जी की मशहूर नज्Þम 'कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा' तो सभी ने सुनी होगी। और इस नज्Þम की खूबसूरती में कई बार डू...
खिलौने - कैफ़ी आज़मी
रेत की नाव, काठ के माँझी काठ की रेल, सीप के हाथी हल्की भारी प्लास्टिक की किलें मोम के चाक जो रुकें न चलें राख के खेत, धूल के खलियान भा...
मेरे गीत तुम्हारे पास
दुष्यंत कुमार को बहुत पहले से पढ़ते-गाते आ रहा हूँ. जब-तब उनका लिखा होंठों पर थिरकता रहता है. प्रस्तुत है दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल... मेर...
सपने - पाश
सपने हर किसी को नहीं आते बेजान बारूद के कणों में सोई आग को सपने नहीं आते बदी के लिए उठी हुई हथेली के पसीने को सपने नहीं आते शेल्फ़ों में पड़...
गुलामी - रघुवीर सहाय.
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