रेख्ता के तुम ही उस्ताद नहीं हो...
उन्हें समर्पित, जिन्हें पढ़ना हमेशा ख़ुद को कुरेदना भी रहा। बकौल मिर्ज़ा ग़ालिब - "रेख्ता के तुम ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब, सुनते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था"
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मंगलवार, 18 जून 2013
दुष्यंत कुमार - कुछ कविता पोस्टर
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हबीब जालिब - कविता पोस्टर
दुष्यंत कुमार - कुछ कविता पोस्टर
मेरे गीत तुम्हारे पास
दुष्यंत कुमार को बहुत पहले से पढ़ते-गाते आ रहा हूँ. जब-तब उनका लिखा होंठों पर थिरकता रहता है. प्रस्तुत है दुष्यंत कुमार की एक ग़ज़ल... मेर...
खिलौने - कैफ़ी आज़मी
रेत की नाव, काठ के माँझी काठ की रेल, सीप के हाथी हल्की भारी प्लास्टिक की किलें मोम के चाक जो रुकें न चलें राख के खेत, धूल के खलियान भा...
तीन रुपये किलो - अष्टभुजा शुक्ल
छोटे-छोटे घरों तक पहुँचे अमरूद नाक रख ली फलों की बिके चार रुपए किलो नमक-मिर्च से भी खा लिए गए छिलके और बीज तक कर दिए समर्पित तर गए पैसे अमर...
यह बच्चा कैसा बच्चा है
इब्ने इंशा जी की मशहूर नज्Þम 'कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा' तो सभी ने सुनी होगी। और इस नज्Þम की खूबसूरती में कई बार डू...
सज़ा और सवाल - अहमद फ़राज़
एक बार ही जी भर के सज़ा क्यूँ नहीं देते ? मैं हर्फ़-ए-ग़लत हूँ तो मिटा क्यूँ नहीं देते ? मोती हूँ तो दामन में पिरो लो मुझे अपने, आँसू हू...
हबीब जालिब, साथी सचिन की कलम से...
अभी तक तो जो कुछ इस ब्लाग पर प्रस्तुत करता रहा, वह अकेले की पसंद थी। लेकिन पिछले दिनों एक लेखक को एक साथी के साथ पढ़ा। मेरे उन साथी ने उस ले...
गुलामी - रघुवीर सहाय.
चाँद ने क्या-क्या मंज़िल कर ली
यूं तो चाँद तकरीबन हर शायर का प्रिय विषय रहा है, लेकिन इब्ने इंशा का चाँद जैसे उनका ही कोई हिस्सा है। गिनी-चुनी ही रचनाएं होंगी जिनमें इंशा...
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