बुधवार, 22 अप्रैल 2009

घिन तो नहीं आती है ? - नागार्जुन

पूरी स्पीड में है ट्रामखाती है दचके पै दचकासटता है बदन से बदन –पसीने से लथपथ।छूती है निगाहों कोकत्थई दांतों की मोटी मुस्कानबेतरतीब मूंछों की थिरकनसच-सच बतलाओघिन तो नहीं आती है?जी तो नहीं कढ़ता है?कुली-मजदूर हैंबोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेलाधूल-धुँआ-भाफ से पड़ता है साबक़ाथके-मांदे जहाँ-तहाँ हो जाते हैं...

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

रोटियाँ - नजीर अकबराबादी

जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियांफूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियांआँखें परीरुख़ों से लड़ाती हैं रोटियाँसीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियाँजितने मज़े हैं सब ये दिखाती हैं रोटियाँरोटी से जिस का नाक तलक पेट है भराकरता फिरे है क्या वो उछल कूद जा ब जादीवार फाँद कर कोई कोठा उछल गयाठठ्ठा हँसी शराब सनम साक़ी...