गुरुवार, 6 अगस्त 2009

शहर-दर्-शहर घर जलाये गए - नासिर काज़मी

पाकिस्तान के मकबूल शायरों में से एक जनाब नासिर काज़मी की ग़ज़ल आपके रु-ब-रु है। नासिर काज़मी की पाकिस्तान के तरक्कीपसंद शाइरों में अपनी अलग पहचान है।

शहर-दर्-शहर घर जलाये गये
यूँ भी जश्न-ए-तरब मनाये गये

इक तरफ़ झूम कर बहार आई
इक तरफ़ आशियाँ जलाये गये

क्या कहूँ किस तरह सर-ए-बाज़ार
इस्मतों के दिए बुझाये गये

आह वो खिल्वातों के सरमाये
मजमा-ए-आम में लुटाये गये

वक्त के साथ हम भी ऐ 'नासिर
ख़ार-ओ-ख़स की तरह बहाए गये

जश्न-ए-तरब= आनंदोत्सव, खिलवत= एकांत, ख़ार-ओ-ख़स=कांटे और घास-फूस