मंगलवार, 25 अगस्त 2009

दो कवितायें - हरिओम राजोरिया

हरिओम राजोरिया हिन्दीभाषी कवियों में एक स्थापित नाम है। मध्य प्रदेश के छोटे से कस्बे (जिसे अब जिला होने का भी दर्जा मिल चुका है) अशोकनगर में रहने वाले हरिओम पेशे से तो इंजिनियर हैं पर उससे कहीं ज़्यादा कवि, रंगकर्मी और आम आदमी। इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े हरिओम की कविताओं में वे छोटी-छोटी चीज़ें...

बुधवार, 12 अगस्त 2009

तीन रुपये किलो - अष्टभुजा शुक्ल

छोटे-छोटे घरों तकपहुँचे अमरूदनाक रख ली फलों कीबिके चार रुपए किलो नमक-मिर्च से भीखा लिए गएछिलके और बीज तककर दिए समर्पिततर गए पैसेअमरूद के साथ सजी-धजी दुकानों परबैठे-बैठेमहंगे फलों नेबहुत कोसा अमरूदों कोअपना भाव इतना गिराने के लिएबच्चों को चहकनहा बनाने के लिए फलों का राजा भी रिसियाया बहुतअमरूदों से तो...

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

शहर-दर्-शहर घर जलाये गए - नासिर काज़मी

पाकिस्तान के मकबूल शायरों में से एक जनाब नासिर काज़मी की ग़ज़ल आपके रु-ब-रु है। नासिर काज़मी की पाकिस्तान के तरक्कीपसंद शाइरों में अपनी अलग पहचान है। शहर-दर्-शहर घर जलाये गयेयूँ भी जश्न-ए-तरब मनाये गयेइक तरफ़ झूम कर बहार आईइक तरफ़ आशियाँ जलाये गयेक्या कहूँ किस तरह सर-ए-बाज़ारइस्मतों के दिए बुझाये गयेआह...

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

आग लगाने वालो...- मंगलेश डबराल

मंगलेश डबराल जी की चंद पंक्तियों की एक कविता, पर असल में एक बहुत बड़ी हकीक़त। जब भी ये कविता जेहन में उभरती है, तमाम रूपों में मौजूद भेद-भाव और शोषण की तस्वीर भी आँखों के सामने लहराने लगती है, मन के कोने...

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

कुछ चित्र - धूमिल

(१)सबसे अधिक हत्याएँसमन्वयवादियों ने की।दार्शनिकों नेसबसे अधिक ज़ेवर खरीदा।भीड़ ने कल बहुत पीटाउस आदमी कोजिस का मुख ईसा से मिलता था।(२)वह कोई और महीना था।जब प्रत्येक टहनी पर फूल खिलता था,किंतु इस बार तोमौसम बिना बरसे ही चला गयान कहीं घटा घिरीन बूँद गिरीफिर भी लोगों में टी.बी. के कीटाणुकई प्रतिशत बढ़...

मंगलवार, 2 जून 2009

हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही है - रघुवीर सहाय

वैसे तो रघुवीर सहाय का नाम सुनते ही मुझे "पढ़िये गीता बनिये सीता" कविता याद आ जाती है, पर कुछ ही दिन पहले यह कविता पढ़ी। एक हँसी के बहाने कितना कुछ कह दिया गया है इस कविता में... हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही हैहँसो, अपने पर न हँसना क्योंकि उसकी कड़वाहट पकड़ ली जाएगीऔर तुम मारे जाओगेऐसे हँसो कि बहुत खुश...

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

घिन तो नहीं आती है ? - नागार्जुन

पूरी स्पीड में है ट्रामखाती है दचके पै दचकासटता है बदन से बदन –पसीने से लथपथ।छूती है निगाहों कोकत्थई दांतों की मोटी मुस्कानबेतरतीब मूंछों की थिरकनसच-सच बतलाओघिन तो नहीं आती है?जी तो नहीं कढ़ता है?कुली-मजदूर हैंबोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेलाधूल-धुँआ-भाफ से पड़ता है साबक़ाथके-मांदे जहाँ-तहाँ हो जाते हैं...

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

रोटियाँ - नजीर अकबराबादी

जब आदमी के पेट में आती हैं रोटियांफूली नहीं बदन में समाती हैं रोटियांआँखें परीरुख़ों से लड़ाती हैं रोटियाँसीने ऊपर भी हाथ चलाती हैं रोटियाँजितने मज़े हैं सब ये दिखाती हैं रोटियाँरोटी से जिस का नाक तलक पेट है भराकरता फिरे है क्या वो उछल कूद जा ब जादीवार फाँद कर कोई कोठा उछल गयाठठ्ठा हँसी शराब सनम साक़ी...